हसरत

"कब से ज़िंदा हूँ मैं अपनी हसरतों को दिल में समेटे हुए, 

तू आ, आकर मेरी हसरतों को मुमकिन कर दे।


वादा करता हूँ, वादा करता हूँ, करूँगा वफ़ा इस क़ायनात तक,

फिर चाहे ये ज़मीं, ये आसमाँ मुझे रुस्वा कर दे।


निकलेगी नहीं, निकलेगी नहीं, आह भी कभी इस दिल से मेरे,

तू जो एक बार इस दिल पे मरहम कर दे।"


कब से ज़िंदा हूँ मैं अपनी हसरतों को दिल में समेटे हुए, 

तू आ, आकर मेरी हसरतों को मुमकिन कर दे।"

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